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अब बंगाल से बेदखल होंगे मार्क्स

८ अप्रैल २०१२

पश्चिम बंगाल में करीब साढ़े तीन दशक तक राज करने वाली वामपंथी पार्टियां पिछले साल तृणमूल कांग्रेस की लहर में बह गईं. अब वामपंथ के जनक कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंजेल्स की बारी है. वह पाठ्यपुस्तकों से विदा होने वाले हैं.

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तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari

यह कहना ज्यादा सही होगा कि राज्य में इतिहास की स्कूली किताबों में मार्क्स अब खुद ही इतिहास बनने वाले हैं. पाठ्यक्रम सुधार समिति ने मार्क्स के अलावा एंजेल्स और रूसी क्रांति को हटाने की सिफारिश की है. इनकी जगह अब बीसवीं सदी के लोकतांत्रिक आंदोलनों को पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाएगा. समिति की सिफारिशों का खुलासा होने के बाद इसका विरोध भी शुरू हो गया है. लेकिन पाठ्यक्रम सुधार समिति ने इस बदलाव को राजनीति से परे करार दिया है. समिति अपनी सिफारिशें अगले सप्ताह सरकार को सौंपेगी.

बदलाव की शुरूआत

बदलाव की लहर पर सवार होकर बीते साल सत्ता में आई तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी की अगुवाई वाली सरकार ने स्कूली पाठ्यक्रमों में सुधार के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया. शिक्षाविद अवीक मजुमदार की अगुवाई वाली उसी समिति ने अपनी रिपोर्ट में इतिहास के स्कूली पाठ्यक्रम में बड़े पैमाने पर बदलाव की सिफारिश की है. राज्य के स्कूली छात्र कोई दो दशक से भी लंबे अरसे से 11वीं और 12वीं कक्षा में इतिहास में मार्क्स और बोलशेविक क्रांति पढ़ते रहे हैं. लेकिन अब वह इनकी जगह महात्मा गांधी, नेल्सन मंडेला और दूसरे समकालीन नेताओं के बारे में पढ़ेंगे.

Schulbuch des Fachs Geschichte über das kontrovers diskutiert wird Indien
तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari

सिफारिशों का विरोध

पाठ्यक्रम सुधार समिति की सिफारिशें सामने आते ही इनका विरोध शुरू हो गया है. वरिष्ठ वामपंथी नेता और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी इतिहास के पाठ्यक्रम से रूसी क्रांति, मार्क्स और एंजेल्स से संबंधित अध्याय कथित तौर पर हटाने के लिए राज्य सरकार की आलोचना की है. चटर्जी कहते हैं, "मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं है कि आखिर विश्व इतिहास से संबंधित अध्यायों को इतिहास की पुस्तकों से हटाने के बारे में मुख्यमंत्री को सलाह कौन दे रहा है. लेकिन यह फैसला गलत और विवादास्पद है." उनकी दलील है कि छात्रों के मार्क्स, एंजेल्स और रूसी क्रांति के बारे में पढ़ने का मतलब यह नहीं है कि वह वामपंथी बन जाएंगे. सोमनाथ सवाल करते हैं, "मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि आखिर ऐसी ऐतिहासिक घटनाओं और इतिहास के प्रमुख पात्रों को पाठ्यक्रम से क्यों हटाया जा रहा है. यह अनावश्यक और दुर्भाग्यपूर्ण है." सीपीआई सांसद गुरुदास दासगुप्ता ने भी इस प्रस्ताव को तानाशाही करार दिया है. वह कहते हैं, "11वीं और 12वीं की इतिहास की पुस्तकों में औद्योगिक क्रांति का विस्तार से जिक्र किया गया है. इसी संदर्भ में कार्ल मार्क्स और इस क्रांति में उनके योगदान का जिक्र आता है." दासगुप्ता का आरोप है कि यह सिफारिशें राजनीति से प्रेरित हैं और इसका मकसद इतिहास को विकृत करना है.

Buchläden in der berühmten College Street in Kalkutta
तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari

समिति की सफाई

पाठ्यक्रम सुधार समिति के अध्यक्ष अवीक मजुमदार कहते हैं कि यह कहना गलत है कि हमने इतिहास के पाठ्यक्रम से मार्क्सवादी आंदोलन या वामपंथ का सूपड़ा साफ कर दिया है. समिति ने अपनी सिफारिशों में लोकतांत्रिक आंदोलनों, विभिन्न विदेशी हमलावरों की ओर से देश पर हुए हमलों और बीसवीं सदी का इतिहास शामिल करने पर जोर दिया है. देश की आजादी के बाद बांग्लादेश व श्रीलंका की बढ़ती अहमियत को ध्यान में रखते हुए उन पर भी अलग अध्याय शामिल करने की सिफारिश की गई है.

मजुमदार का दावा है कि वाममोर्चे के शासनकाल में इतिहास का पाठ्यक्रम दिशाहीन था. इसमें महज वामपंथी आंदोलनों का जिक्र किया गया था. वह कहते हैं, "हमने रूसी क्रांति से संबंधित अध्याय हटा दिया है. लेकिन लेनिन और चीनी क्रांति को पाठ्यक्रम में बरकरार रखा है." क्या इस बदलाव की वजह राजनीतिक है.  इस सवाल पर वह पलट कर सवाल करते हैं कि अगर हमारी मंशा वामपंथ से संबंधित अध्याय को पूरी तरह खत्म करने की होती तो हम इसमें चीनी क्रांति और लेनिन को क्यों बहाल रखते. समिति मानती है कि बच्चों को हरित क्रांति, चिपको आंदोलन और नेल्सन मंडेला के बारे में जानकारी देना भी जरूरी है.

समिति ने 11वीं व 12वीं के अंग्रेजी के पाठ्यक्रम में अमिताभ घोष, अरुंधति राय, झुंपा लाहिड़ी, विक्रम सेठ, आरके नारायण और अनिता देसाई जैसे समकालीन भारतीय लेखकों के कार्यों को शामिल करने की भी सिफारिश की है. बंगाल में 11वीं और 12वीं की पढ़ाई और परीक्षा का संचालन करने वाली पश्चिम बंगाल उच्च शिक्षा परिषद के अध्यक्ष मुक्तिनाथ चट्टोपाध्याय कहते हैं, "छात्रों में साहित्य के प्रति रुचि पैदा करने और उनको भारतीय अंग्रेजी साहित्य की मौजूदा स्थिति की जानकारी देने के लिए समकालीन लेखकों के कार्यों के बारे में जानकारी देना जरूरी है."

Buchläden in der berühmten College Street in Kalkutta
कोलकाता की कॉलेज स्ट्रीटतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari

तृणमूल का बचाव

बंगाल में सत्ता पर काबिज तृणमूल कांग्रेस ने सीपीएम नेताओं के आरोप के जवाब में कहा है कि समिति को पाठ्यक्रमों से वामपंथ से संबंधित अध्याय हटाने का कोई निर्देश नहीं दिया गया था. तृणमूल सांसद डेरेक ओ ब्रायन कहते हैं, "इतिहास न तो बोलशेविक क्रांति से शुरू होता है और न ही बसु व भट्टाचार्य पर आकर खत्म होता है. मार्क्स को ऐतिहासिक संदर्भ के तौर पर पढ़ना जरूरी है. लेकिन महात्मा गांधी और मंडेला की कीमत पर ऐसा नहीं किया जा सकता." वह कहते हैं कि इन सुधारों का मकसद इतिहास को विकृत करना नहीं बल्कि उसे सुधारना है. हमने इतिहास के पाठ्यक्रम में संतुलन बनाने का काम किया है. सरकार की दलील है कि राज्य में चौथी से लेकर बारहवीं कक्षा तक छात्रों को मार्क्स, एंजेल्स और बोलशेविक क्रांति की घुट्टी पिलाई जाती है. नए पाठ्यक्रम में संतुलन बनाने का प्रयास किया गया है.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः ओ सिंह

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