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खाने की कमी और संक्रमण के डर से जूझते कोटा में छात्र

चारु कार्तिकेय
१६ अप्रैल २०२०

राजस्थान के कोटा में कोचिंग केंद्रों में पढ़ने वाले छात्र तालाबंदी में अपने घरों से हजारों किलोमीटर दूर फंसे हुए हैं. राजस्थान सरकार इन्हें भेजने को तैयार है लेकिन बिहार सरकार इन्हें वापस लेने को तैयार नहीं है.

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Indien - Bahnstation in Kota
तस्वीर: Anshu Maharaj

बिहार के जमुई के रहने वाले ऋतिक राज पिछले दो सालों से अपने घर से लगभग 1,300 किलोमीटर दूर अकेले रह रहे हैं. राजस्थान के कोटा शहर में वह एक कमरा किराए पर लेकर रहते हैं और मेस में खाना खाते हैं. ऋतिक मेडिकल की पढाई करना चाहते हैं और मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों के एंट्रेंस इम्तिहान की तैयारी कराने वाले सैकड़ों कोचिंग केंद्रों के लिए मशहूर कोटा में, ऐसे ही एक कोचिंग केंद्र में एनईईटी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं.

लेकिन इन दिनों परीक्षा शायद ऋतिक की आखिरी चिंताओं में से होगी. कोटा में कोरोना वायरस के संक्रमण के 84 मामले सामने आ चुके हैं और दूसरे राज्यों से आये इस शहर में बड़ी संख्या में रहने वाले ऋतिक जैसे छात्र चिंतित हैं कि घर और घरवालों से इतनी दूर अगर उन्हें कुछ हो गया तो क्या होगा. लेकिन उससे भी बड़ी समस्या यह है कि शहर में जो हालात हैं उनकी वजह से ऋतिक जैसे हजारों छात्रों को खाने के लाले पड़ गए हैं.

खत्म हो रहे हैं पैसे

प्रशासन तालाबंदी कड़ाई से लागू कर रहा है और सभी संस्थानों की तरह शहर के मशहूर कोचिंग इंस्टीट्यूट भी बंद हो चुके हैं. ऋतिक ने डीडब्ल्यू को बताया कि अधिकतर मेस भी बंद हैं, और जो खुली हैं वहां खाने का स्तर अच्छा नहीं है. वह कहते हैं कि आजकल उन्हें पूरे दिन में अगर एक वक्त भी खाना मिल जा रहा है तो वह खुद को खुशकिस्मत समझ रहे हैं. ऋतिक यह भी कहते हैं कि जरूरत की चीजों की जो दुकानें खुली हुई हैं उनमें दुकानदारों ने सभी चीजों के दाम भी बढ़ा दिए हैं.

Indien Rajasthan | Wegen Corona gestrandete Studenten
तस्वीर: Anshu Maharaj

ऋतिक के अनुसार छात्रों के पास पैसे खत्म हो रहे हैं और आर्थिक रूप से कमजोर घरों से आनेवाले छात्रों के माता-पिता भी उन्हें पैसे भेज नहीं पा रहे हैं क्योंकि तालाबंदी की वजह से उनका रोजगार, व्यापार आदि सब बंद हो गया है. बिहार के ही समस्तीपुर के रहने वाले अंशु महाराज भी कोटा में रहते हैं और कोटा के छात्र समुदाय पर केंद्रित एक फेसबुक पेज चलाते हैं. अंशु उनमें से हैं जिन्हें तालाबंदी के बीच में कोटा छोड़ने की प्रशासन से अनुमति मिल गई.

इन सभी लोगों ने कोटा प्रशासन की मदद से टैक्सी बुक की और उत्तर प्रदेश और बिहार में अपने अपने घर वापस लौट गए. उनका कहना है कि कोटा प्रशासन ने उनके हालात के प्रति काफी सहानुभूति दिखाई है और इसलिए उन्हें वापस जाने की अनुमति भी दी गई. लेकिन समस्या यहां खत्म नहीं हुई. कोटा से अंशु जैसे छात्रों को लेकर निकली टैक्सियों का पहला जत्था तो उत्तर प्रदेश और बिहार में प्रवेश करने में सफल रहा. लेकिन बिहार में जब प्रशासन को इस बात का पता चला तो अधिकारियों ने इसका विरोध किया और इन छात्रों के राज्य में प्रवेश पर रोक लगा दी.

रो रहे हैं माता-पिता

अंशु ने डीडब्ल्यू को बताया कि उनके जैसे सिर्फ कुछ ही छात्र कोटा से निकल पाए और 25 से 30 हजार छात्र अभी भी वहीं फसे हुए हैं. इन छात्रों की भी कोई मदद करे इस उद्देश्य से कई छात्रों ने मिलकर सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को उठाया. छात्रों ने 'सेंड अस बैक होम' या 'हमें वापस घर भेजो' के नारे के साथ ट्विटर पर हैशटैग चलाया जिसके तहत हजारों ट्वीट किए गए और हैशटैग ट्रेंड करने लगा.

लेकिन अभी तक इन छात्रों की समस्या का कोई समाधान नहीं निकला है. राजस्थान सरकार इन्हें भेजने को तैयार है लेकिन बिहार सरकार इन्हें वापस लेने को तैयार नहीं है. अंशु कहते हैं कि जिन लोगों का कहना है कि इन छात्रों का कोटा में ही डंटे रहने के लिए प्रोत्हासन करना चाहिए वो बताएं कि जिन छात्रों के माता-पिता फोन पर रो-रो कर उनसे बातें कर रहे हों उन्हें आप क्या प्रोत्साहन देंगे. फिल्हाल, कोटा में अपने अपने कमरों में बैठे हुए ये छात्र बस घर लौटने की राह देख रहे हैं.

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