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सरकारी डॉक्टरों को रिटायरमेंट लेने से रोक नहीं सकती सरकार

२ दिसम्बर २०१७

भारत में सरकारी अस्पतालों की हालत और सुविधाएं बेहतर करने के बजाए राज्य सरकारें वहां के डॉक्टरों पर हुक्म झाड़ती हैं. लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के बाद अब ऐसी सरकारों के हाथ बंध जाएंगे.

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Situation in Krankenhäusern Kalkutta Indien
तस्वीर: DW/P. Samanta

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने स्पष्ट किया है कि वर्तमान सरकारी नियमों में नियुक्ति प्राधिकारी को यह अधिकार नहीं है कि जनहित के नाम पर किसी सरकारी कर्मी को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति यानी वीआरएस लेने से रोक सके. उच्च न्यायालय का कहना है कि राज्य सरकार चिकित्सकों की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति पर रोक नहीं लगा सकती. स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति चाहने वाले पांच डॉक्टरों द्वारा दायर अलग-अलग मुकदमों की एक साथ सुनवाई करते हुए न्यायाधीश देवेंद्र कुमार अरोड़ा तथा न्यायाधीश रजनीश कुमार की पीठ ने आदेश दिया कि राज्य सरकार को जनहित या डॉक्टरों की कमी के नाम पर उन्हें वीआरएस देने से मना करने का कानूनी अधिकार नहीं है.

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इनमें से दो मुकदमों में अधिवक्ता नूतन ठाकुर के अनुसार, न्यायालय ने कहा कि जिन तीन मामलों में डॉक्टरों की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का प्रार्थनापत्र सरकार ने नामंजूर किया है, उनमें वे 30 नवंबर से सेवानिवृत्त माने जाएंगे और जिन दो मामलों में अभी निर्णय लिया जाना बाकी है, उनमें वे डॉक्टर 31 दिसंबर से सेवानिवृत्त माने जाएंगे, बशर्ते उनके खिलाफ कोई विभागीय कार्यवाही न हो रही हो. न्यायालय ने इन सभी मामलों में तीन माह में समस्त सेवा संबंधी लाभ भी देने के आदेश दिये.

Indien Westbengalen Gesundheitssystem, Krankenhäuser
भारी दबाव में हैं सरकारी अस्पतालतस्वीर: DW/P. Samanta

इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने प्रदेश की स्वास्थ्य सेवा की हालत पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा, "सरकार को आम लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं तथा बेहतर सरकारी अस्पतालों की सुविधा उपलब्ध कराने की दिशा में वास्तविक प्रयास करने चाहिए और यह भी देखना चाहिए कि आखिर सरकारी डॉक्टर वीआरएस क्यों ले रहे हैं. सरकार को सोचना होगा कि जहां अन्य क्षेत्रों में सरकारी सेवा में आने की मारामारी है, वहीं डॉक्टर सरकारी सेवा में क्यों नहीं आ रहे हैं और आने पर वीआरएस क्यों मांग रहे हैं."

न्यायालय ने डॉक्टरों को उनकी योग्यता के काम की जगह प्रशासकीय कार्यों में लगाये जाने पर भी चिंता व्यक्त की और सरकार से इनकी कैडर व्यवस्था को बेहतर करने को कहा.

इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले का असर दूसरे राज्यों पर भी पड़ेगा. वहां भी जनहित के नाम पर सरकारी डॉक्टरों को वीआरएस से रोकने वाली सरकारें मुश्किल में पड़ेंगी. विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक देश में औसतन 10,000 लोगों के लिए सात डॉक्टर हैं. 2030 तक इस अनुपात को एक डॉक्टर प्रति एक हजार लोग करने के लिए भारत को 20 लाख से ज्यादा डॉक्टरों की जरूरत होगी. रिपोर्टों के मुताबिक भारत में हर साल 52,715 एमबीबीएस डॉक्टर तैयार होते हैं.

(मरीज को डॉक्टर के ढाई मिनट भी नहीं नसीब)

ओएसजे, आईएएनएस