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तिब्बती संस्कृति का पाठ पढ़ रही है भारतीय सेना

प्रभाकर मणि तिवारी
१९ अक्टूबर २०२१

चीनी गतिविधियों से निपटने के लिए भारतीय सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तैनात रहने वाले अपने जवानों और अधिकारियों को तिब्बतोलॉजी का प्रशिक्षण दे रही है.

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तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/M. Mattoo

भारत और चीन के बीच जारी तनाव अब उत्तरी से पूर्वी सीमा तक पहुंच गया है. इस बीच, भारतीय सेना जवानों को तिब्बतोलॉजी का प्रशिक्षण दे रही है ताकि उनमें तिब्बती संस्कृति, लोगों, रहन-सहन और समाज की बेहतर समझ पैदा हो. इसके लिए देश भर के सात संस्थानों को चुना गया है. इनमें से एक सिक्किम में है और दूसरा अरुणाचल प्रदेश में. यह दोनों राज्य तिब्बत की सीमा से लगे हैं. वहां सीमा के दोनों ओर भारी तादाद में तिब्बती आबादी है.

पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू इस योजना के तहत फिलहाल छह सप्ताह का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. लेकिन जल्दी ही इसकी अवधि बढ़ा कर तीन महीने करने का प्रस्ताव है. कोलकाता स्थित सेना के पूर्वी कमान मुख्यालय के एक अधिकारी कहते हैं, "एलएसी पर तैनात जवानों और अधिकारियों में तिब्बत की संस्कृति की समझ विकसित करने और सूचना युद्ध में पारंगत बनाने के लिए यह प्रशिक्षण बेहद अहम है. इससे पूर्वी सीमा पर चीन के कुप्रचार से निपटने में सहायता मिलेगी."

हिमाचल और तिब्बती संस्कृति का मिलन

क्यों है अहम पायलट प्रोजेक्ट?

तिब्बत के अध्ययन का प्रस्ताव पहली बार बीते साल अक्टूबर आयोजित सैन्य कमांडरों के सम्मेलन में पेश किया गया था. सेना के एक अधिकारी बताते हैं, "सैन्य अधिकारी आम तौर पर पाकिस्तान के बारे में बहुत कुछ जानते है. लेकिन उनमें चीन और चीनी मानसिकता की ऐसी समझ की कमी है. चीन को बेहतर तरीके से समझने वाले अधिकारियों की तादाद बहुत कम है. तिब्बत को समझने वाले तो और भी कम हैं. बदलते हालात में इन कमियों को दूर करना जरूरी और समय की मांग है." सेना का कहना है कि इसके लिए चुने जाने वाले अधिकारियों को पाकिस्तान के साथ पश्चिमी मोर्चे के बजाय एलएसी पर लंबे समय तक तैनाती दी जाएगी.

अरुणाचल प्रदेश के टेंगा स्थित 5 माउंटेन डिवीजन के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना था, "तिब्बती परंपराओं, सांस्कृतिक विशिष्टताओं, लोकतंत्र और राजनीतिक प्रभाव आदि को समझने से हमें अपने कामकाज की दिशा और कमियों की जानकारी मिलेगी. इस कोर्स के लिए संबंधित इलाकों में तैनात अधिकारियों को बारी-बारी प्रशिक्षण के लिए को चुना जाएगा. प्रशिक्षित अधिकारी अपने बटालियनों में प्रशिक्षकों के तौर पर कार्य करेंगे और कुछ साल में सेना में तिब्बती विषयों को समझने वाले लोगों की एक बड़ी तादाद हो जाएगी." उनका कहना है कि एलएसी पर तैनात अधिकारियों और जवानों के सिर्फ चीनी यानी मंदारिन भाषा सीखने से काम नहीं चलेगा.

सेना के सूत्रों ने बताया कि अरुणाचल प्रदेश स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन कल्चर स्टडीज में पहले बैच में इस साल मार्च से जून के बीच 15 अधिकारी और पांच जवानों का प्रशिक्षण पूरा हो गया है. अब दूसरा बैच नवंबर में शुरू होगा.

कोलकाता स्थित पूर्वी कमान के एक अधिकारी कहते हैं, "कई चीजें ऊपर से सामान्य नजर आ सकती हैं. लेकिन उससे स्थानीय लोगों की भावनाओं के आहत होने का खतरा है. प्रशिक्षण के बाद तिब्बती संस्कृति को बेहतर तरीके से समझने के साथ स्थानीय लोगों के साथ संबंधों को भी मजबूत किया जा सकेगा."

पूर्वी कमान ने इस पाठ्यक्रम की अवधि डेढ़ से बढ़ा कर तीन महीने करने का प्रस्ताव भेजा है. इसके साथ ही भविष्य में प्रमोशन और पोस्टिंग के साथ भी इस प्रशिक्षण को जोड़ा जा सकता है. सेना ने अरुणाचल के बोमडिला स्थित एक बौद्ध मठ के साथ भी गठजोड़ किया है ताकि तिब्बती मामलों के विशेषज्ञ लामा भी अतिथि प्रशिक्षण के तौर पर कुछ गूढ़ विषयों को पढ़ा सकें.

सीमा पर बढ़ती गतिविधियां

लद्दाख में हुई हिंसक झड़प के बाद चीनी सेना अब पूर्वोत्तर सीमा पर अपनी गतिविधियां लगातार तेज कर रही है. अरुणाचल प्रदेश से लगी तिब्बत की सीमा पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी)  के नजदीक तक रेलवे लाइन और हाइवे समेत दूसरे आधारभूत ढांचे को मजबूत करने और नियंत्रण रेखा पार कर भारतीय सीमा में प्रवेश करने के आरोप लगाते रहे हैं. चीन अरुणाचल प्रदेश के दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा होने का दावा करता रहा है.

पूर्वी मोर्चे पर चीन की सक्रियता का मुकाबला करने के लिए भारत सरकार ने हाल में इलाके में आधारभूत ढांचे को मजबूत करने का काम शुरू किया है. इसके तहत ब्रह्मपुत्र पर नए ब्रिज के अलावा सुरंग और सड़कें बनाने का काम शुरू हुआ है. अब तिब्बतोलॉजी का प्रशिक्षण भी भारत की इसी रणनीति का हिस्सा है.

 

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