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तालिबान से शांति बातचीत और पाक की बेताबी

१३ जून २०११

अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई ने कहा है कि तालिबान के साथ शांति बातचीत में पाकिस्तान अहम भूमिका निभाना चाहता है. पाकिस्तान को तालिबान का गढ़ माना जाता है जहां से अफगानिस्तान में काफी हमले होते हैं.

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Afghan President Hamid Karzai, right, escorts Pakistan's Prime Minister Yusuf Raza Gilani, for giving a joint press conference at the presidential palace in Kabul, Afghanistan on Saturday, Dec 4, 2010. (AP Photo/Musadeq Sadeq)
गिलानी के साथ करजईतस्वीर: AP

तालिबान से बातचीत में पाकिस्तान की भूमिका इसलिए भी अहम है क्योंकि वहां अफगान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क जैसे कई गुट रहते हैं. शुक्रवार को पाकिस्तान के दो दिन के दौरे पर गए करजई ने इस्लामाबाद में प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी से मुलाकात की और तालिबान से बातचीत की पहल में मदद देने को कहा.

करजई की ओर से बनाई गई शांति परिषद के सचिव मोहम्मद मासूम स्तानिकजई ने बताया, "बातचीत में अफगान सरकार का संदेश बहुत स्पष्ट था. संदेश यह था कि जो (विद्रोही) शांति और मेलमिलाप की प्रक्रिया का हिस्सा बनना चाहते हैं, उन्हें साथ लिया जाए और उनसे बातचीत के लिए रास्ता तैयार किया जाए. लेकिन जो बातचीत नहीं करना चाहते उन्हें छोड़ दिया जाए. उनके लिए कोई जगह न छोड़ी जाए और लोगों को उनसे लड़ने के लिए प्रेरित किया जाए."

करजई के प्रवक्ता वहीद ओहर ने कहा, "पाकिस्तान पहले से कहीं ज्यादा इस पहल का स्वागत करता है. प्रस्ताव स्वीकार किया जाना बेहतर है और (पाकिस्तान ने) व्यावहारिक कदमों के बारे में कुछ वादे भी किए हैं. हमें उम्मीद है कि वादों पर कदम भी उठाए जाएंगे." हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि ये वादे किस तरह के हैं.

करजई पाकिस्तान के एबटाबाद शहर में अल कायदा नेता ओसामा बिन लादेन की मौत के चंद हफ्तों बाद पाकिस्तान के दौरे पर गए. उन्होंने अफगानिस्तान में शांतिपूर्ण समझौते की अमेरिकी इच्छा पर जोर डाला. लेकिन पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्तों में भरोसे की कमी है जिसकी वजह दोनों देशों जारी हिंसा भी है. लेकिन कुछ जानकारों का मानना है कि बिन लादेन की मौत दोनों को करीब ला सकती है.

तालिबान सार्वजनिक रूप से बातचीत की प्रक्रिया को खारिज करता है. अमेरिका में 11 सितंबर 2001 के हमलों से पहले पाकिस्तान अफगानिस्तान की तालिबान सरकार का समर्थक था. लेकिन अफगानिस्तान में अमेरिकी हमले के बाद पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अहम साझीदार बन गया. हालांकि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी अफगानिस्तान में चरमपंथी गुटों के साथ अब भी अपने संपर्क बनाए हुए है. उसे उम्मीद है कि अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की वापसी के बाद ये संपर्क फायदेमंद होंगे. इनमें खास तौर से हक्कानी गुट का नाम लिया जा सकता है जिसके खिलाफ कार्रवाई करने की अमेरिकी मांग को पाकिस्तान बराबर ठुकराता रहा है. हक्कानी गुट पाकिस्तान के सरहदी इलाकों से अफगानिस्तान में विदेशी सैनिकों को अकसर निशाना बनाता रहा है.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः उभ

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