1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

अब गर्मियों में एसी छुड़ाएगा पसीने

शिवप्रसाद जोशी
२५ जून २०१८

एयरकंडीशनर 24 डिग्री सेल्सियस की डिफॉल्ट सेटिंग पर रखे जाने का प्रस्ताव है. सरकार ने निर्माता कंपनियों के साथ बैठक की है. 24 से 26 डिग्री सेल्सियस की डिफॉल्ट सेटिंग को आने वाले समय में अनिवार्य भी किया जा सकता है.

https://p.dw.com/p/30EWS
Mann öffnet Klimanalage
तस्वीर: Colourbox/waewkid

सरकार का कहना है कि ऐसा करने से बड़े पैमाने पर बिजली की बचत की जा सकेगी. ये वित्तीय और स्वास्थ्य के लिहाज से भी बेहतर कदम होगा. सरकार का दावा है कि एसी की नई सेटिंग्स से एक साल में 20 अरब यूनिट बिजली की बचत की जा सकती है. केंद्रीय ऊर्जा मंत्री की ओर से जारी बयान में कहा गया कि सामान्य मनुष्य के शरीर का तापमान 36 से 37 डिग्री सेल्सियस होता है लेकिन बड़ी संख्या में व्यवसायिक प्रतिष्ठान, होटल और दफ्तर, एसी को 18-21 डिग्री सेल्सियस में रखते हैं. यह न सिर्फ असुविधाजनक है, बल्कि स्वास्थ्य के लिहाज से भी सही नहीं है. जापान का उदाहरण देते हुए बताया गया है कि वहां एसी का तापमान 28 डिग्री सेल्सियस पर रेगुलेट किया गया है.

दरअसल इस बारे में ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफीशियन्सी (बीईई) के अध्ययन के बाद सरकार हरकत में आई है. ब्यूरो का सुझाव है कि वातानुकूलन की डिफॉल्ट सेटिंग 24 डिग्री सेल्सियस पर होनी चाहिए. इससे न सिर्फ बिजली की बचत होगी, बल्कि ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में भी कटौती होगी. ऊर्जा मंत्रालय इस सिलसिले में शुरुआत के रूप में पहले तमाम प्रतिष्ठानों और निर्माता कंपनियों को एडवाइजरी जारी करेगा. चार से छह महीने के जागरूकता अभियान के बाद उपभोक्ताओं का फीडबैक लेने के लिए एक सर्वे कराया जाएगा और उसके बाद अगर जरूरत पड़ी तो नए सुझाव को अनिवार्य कर दिया जाएगा. बताया जा रहा है कि एसी निर्माता कंपनियों ने सुझाव का समर्थन किया है.

बीईई के मुताबिक मौजूदा बाजार रूझान को देखें तो एसी की बदौलत भारत में कुल भार 2020 तक 200 गीगावॉट का होगा और आगे यह बढ़ भी सकता है क्योंकि अभी सिर्फ छह फीसदी घरों में ही एसी इस्तेमाल होता है. बीईई के मौजूदा अनुमानों के मुताबिक देश में कुल इन्स्टॉल्ड एसी क्षमता आठ करोड़ टीआर (टन ऑफ रेफ्रिजरेशन) की है जो 2030 तक बढ़कर 25 करोड़ टीआर हो जाएगी. इस भारी मांग को देखते हुए देश हर दिन बिजली की चार करोड़ यूनिट की बचत कर सकता है.

भारतीय मध्यवर्गीय समाज में एसी, स्टेटस सिंबल भी रहा है. यही मध्यवर्ग चूंकि एक बड़ा उपभोक्ता भी है, लिहाजा मॉल, मल्टीप्लेक्स, मेट्रो, रेल, हवाई जहाज, दफ्तर, होटल आदि ऐसी कोई जगह नहीं छूटी है, जहां उसे यह सुविधा न दी जाती हो. एक तरह से मध्यवर्ग की विलासिता, प्रतिष्ठा और कष्टों से निजात का यह वातानुकूलित कॉरीडोर है. और उपभोग की यह निरंतर कामना तब है, जब वैश्विक पैमाने पर ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन को लेकर बहसें और चिंताएं जारी हैं.

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने कहा है कि एयरकंडीश्नरों से वैश्विक ऊर्जा मांग 2050 तक तीन गुना हो जाएगी. इसके लिए जाहिर है बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन की दरकार होगी. रही बात एयरकंडीश्नरों की, तो 2050 तक पूरी दुनिया में साढ़े पांच अरब से ज्यादा उपकरण चाहिए होंगे. मौजूदा बाजार डेढ़ अरब से कुछ ज्यादा का है. इकोनॉमिक टाइम्स में छपी एक खबर के मुताबिक इसका अर्थ यह है कि अगले तीस साल तक हर सेकंड 10 नए एसी बिकेंगे. इस रफ्तार की भयावहता का अंदाजा लगाते हुए, वित्तीय बोझ के अलावा पर्यावरण और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों और अन्य सामाजिक-आर्थिक विसंगतियों को भी शामिल करना चाहिए.

एसी जैसे उत्पाद विशाल उपभोक्ता आबादी को गर्मी से राहत दिलाने का उपक्रम तो करते हैं लेकिन वैश्विक तापमान को बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन में वे भी कैसी प्रतिकूल भूमिका निभा रहे हैं, लगता है इसका अंदाजा नहीं लगाया गया है. सरकार भी देर से हरकत में आती दिखती है. हालांकि उसकी मंशाओं में कितनी ईमानदारी और पारदर्शिता है, यह अभी देखना होगा. क्योंकि ऐसा नहीं है कि ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएन्सी जैसे संस्थान पहली बार इस तरह के अध्ययन कर रहे हों या इससे पहले किसी पर्यावरण विशेषज्ञ, चिकित्सा या तकनीकी में सजग संस्थान ने इस बारे में कोई स्टडी न की हो. एसी को लेकर अकसर हिदायतें भी दी जाती रही हैं. खासकर स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव के लिए जिम्मेदार सामग्रियों की सूची में एसी का भी नाम है.

इतना सब होने के बाद भी ताज्जुब तो तब होता है, जब पहाड़ों में भी एसी का प्रयोग धड़ल्ले से होता दिखता है. ब्लॉग लेखक देहरादून के जिस हिस्से का निवासी है वो मुख्य शहर से कुछ दूर, हरियाली, पेड़ पौधों और जंगल से घिरा और मसूरी के निकट एक इलाका है. वहां भी पाया कि समृद्धों ने बड़े बड़े मकान बना लिए हैं और उनमें एसी ठुंसे हुए हैं, जबकि गर्मियां इतनी मारक और असहनीय नहीं रही हैं. तापमान में वृद्धि भी कोई असाधारण नहीं है. इसी तरह हिल स्टेशनों के बहुत से होटलों में भी एसी का खुमार चढ़ा हुआ है. उनका कहना है कि पर्यटक की मांग रहती है. तो एसी के उपभोग और सहन करने की क्षमता में गिरावट का संबंध मध्यवर्गीय चाहतों से भी है. रेल, विमान, बस, टैक्सी के सफर में अकसर यही देखा गया है.

किसी उपभोक्ता सामग्री की सार्थकता तभी है, जब उसका इस्तेमाल विवेक और अनुशासन के साथ किया जाए. अगर हम गर्मी से असहज हैं, तो इस बात के लिए भी असहजता होनी चाहिए कि निर्बाध एसी चलाने और उसे कम तापमान पर रखने की प्रवृत्ति से हम एक तरह से अपने पर्यावरण से भी खिलवाड़ कर रहे हैं. बेशक शहरों की जानलेवा धूल और अपार निर्माण कार्यों ने क्या पहाड़ क्या मैदान, धूल और तपिश चारों ओर भर दी है. जिनके पास संसाधन हैं, वे तो अपना बचाव कर लेते हैं लेकिन देश की एक बड़ी आबादी ऐसी बहुत सी तकलीफों में बसर कर रही है. ध्यान से सोचिए, तो एसी के जरिए एक तरह से उनके बुनियादी हक भी मारे जा रहे हैं.

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी