नए रास्ते खोलती जर्मन रिसर्च फेलोशिप
२९ जून २०१८विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए देशों के बीच आपसी सहयोग और आपसी आदान प्रदान बेहद जरूरी है. इसके लिए दुनिया भर में स्कॉलरशिप और फेलोशिप के मौके वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को दिए जाते हैं. इन्हीं में से एक है जर्मन सरकार के अलेक्जांडर फॉन हुम्बोल्ट फाउंडेशन की फेलोशिप जहां दुनिया भर के वैज्ञानिकों और रिसर्च स्कॉलरों का संगम देखने को मिलता है.
28 जून, 2018 को राष्ट्रपति फ्रांक वॉल्टर श्टाइनमायर के आधिकारिक आवास बेलेव्यू पैलेस में हुम्बोल्ट फाउंडेशन के स्कॉलर्स इकट्ठे हुए. मौका था सालाना दावत का, जिसके बाद पूरी दुनिया के शोधकर्ताओं, वैज्ञानिकों और सामाजिक वैज्ञानिकों ने एक-दूसरे को अपनी रिसर्च के बारे में बताया. हर साल करीब 700 स्कॉलर्स को दी जाने वाली इस फेलोशिप में सभी को जर्मनी के अलग-अलग हिस्सों में रहकर काम करना होता है. इसी तरह जर्मन स्कॉलर भी दूसरे देशों में शोध करने जाते हैं.
भारत से आए स्कॉलर कुमार अभिषेक सौर ऊर्जा के क्षेत्र में रिसर्च कर रहे हैं. सौर ऊर्जा और पवन चक्कियों से बिजली पैदा करने वाले अग्रणी देश जर्मनी में रहकर वह यह शोध कर रहे हैं कि इसे भारत में कैसे लागू किया जा सकता है. फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट ऑफ सोलर एनर्जी सिस्टम में शोध कर रहे अभिषेक ने चूंकि इससे पहले भारत में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय में काम किया है, इसलिए उन्हें नवीकरणीय ऊर्जा को स्थापित करने की अड़चनों का भी अनुभव है. मुमकिन है कि उनकी जर्मनी की रिसर्च भारत के लिए राह आसान बनाए और प्राकृतिक ऊर्जा के सही इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा सके.
इसी तरह रोग प्रतिरोधक क्षमता विषय पर काम कर रहे इम्यूनोलॉजिस्ट जॉयदीप दास का शोध है कि कैसे हम अपनी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को दुरुस्त कर सकते हैं. वे क्या कारण या संक्रमण हैं जिसकी वजह से हमारा शरीर रिएक्ट करता है और कैसे इसका समाधान निकाला जा सकता है. इस क्षेत्र में रिसर्च यकीनन भारत के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए फायदेमंद साबित होगी.
जर्मनी में दूसरी तरह की स्कॉलरशिप
सोशल साइंटिस्टों को भी बढ़ावा
हुम्बोल्ट फाउंडेशन कुछ खास देशों के युवा रिसर्चरों को दी जाने वाली चांसलर फेलोशिप को भी होस्ट करता है जिसमें सिर्फ साइंस के शोधकर्ताओं को ही नहीं बल्कि आर्थिक और सामाजिक विषयों पर काम कर रहे सोशल साइंटिस्टों को भी फेलोशिप दी जाती है. इसी फेलोशिप पर भारत से आए पीयूष धवन इस बात पर रिसर्च कर रहे हैं कि भविष्य के शहर कैसे हों. भारत में स्मार्ट शहरों की आजकल बहुत चर्चा है, लेकिन बढ़ती जनसंख्या, गाड़ियां और कम होते संसाधन जैसी कई अड़चनें इस दिशा में लगातार बनी हुई हैं. अगले एक दशक में शहरों को कैसे स्मार्ट बनाया जाए और इसके लिए क्या करना होगा, इस पर आपसी अनुभवों से सीखने की गुंजाइश है.
वहीं श्वेता मेहता शरणार्थियों के विषय पर काम कर रही हैं. जर्मन चांसलर फेलोशिप पाने वाले ये रिसर्चर एक साल तक जर्मनी में रह कर शोध करते हैं. जर्मनी में रह कर विज्ञान और सामाजिक क्षेत्र में काम कर रहे इन स्कॉलर्स के शोध से उनके देशों को फायदा निश्चित तौर पर होगा. साथ ही उनकी जानकारी और शोध दूसरी परियोजनाओं के लिए भी लाभदायक होगा.