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हॉलैंड की सेना ने छोड़ा अफगानिस्तान

१ अगस्त २०१०

चार साल की तैनाती के बाद डच सेना अफगानिस्तान छोड़ रही है. नीदरलैंड्स के सैनिक रविवार को उरुजगान प्रांत में सैन्य अभियान की जिम्मेदारी अमेरिकी सैनिकों को सौंप कर वहां से रवाना हो रहे हैं.

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अलविदा अफगानिस्तानतस्वीर: AP

नीदरलैंड्स में सेना को अफगानिस्तान में बनाए रखने पर भारी विवाद था.

काबुल में डच दूतावास ने कहा है कि एक छोटे से समारोह में डच सैनिक अमेरिकी सैनिकों को जिम्मेदारी सौंपेंगे. वहीं नैटो के नेतृत्व वाली आईसैफ सेना ने अपने बयान में कहा, "डच सैनिकों ने उरुजगान में बहुत अच्छा काम किया है. जितने भी समय वे यहां रहे, हम उनके बलिदान का सम्मान करते हैं."

अफगानिस्तान में आईसैफ की कमांड के तहत 1,950 डच सैनिक तैनात थे जो ज्यादातर उरुजगान प्रांत में थे. यही वह इलाका है जहां बड़े पैमाने पर अफीम की खेती होती है और तालिबान बहुत सक्रिय हैं.

नैटो ने नीदरलैंड्स से अपने सैनिकों की तैनाती बढ़ाने का आग्रह किया था. लेकिन इस मुद्दे पर देश में राजनीतिक विवाद गहरा गया जिसके चलते फरवरी में गठबंधन सरकार तक गिर गई. डच सैनिक 2006 में अफगानिस्तान गए थे और पिछले चार साल में वहां उनके 24 फौजियों को अपनी जान गंवानी पड़ी है. नीदरलैंड्स को हॉलैंड के नाम से भी जाना जाता और वहां के लोगों को डच कहा जाता है.

उरुजगान प्रांत में अब डच सैनिकों के स्थान पर अमेरिकी, ऑस्ट्रेलियाई, स्लोवाक और सिंगापुर के सैनिकों को तैनात किया जाएगा. आईसैफ का कहना है, "हमने उस इलाके में बहुराष्ट्रीय सेना को तैनात करने की योजना बना ली है और हम वहां अपनी उतनी ही ताकत बनाए रखेंगे."

डच दूतावास का कहना है कि अपने अफगान मिशन के लिए नीदरलैंड्स को 1.8 अरब डॉलर खर्च करने पड़े हैं. साथ ही इन चार सालों में वहां विकास के कामों लगे गैर सरकारी संगठनों की संख्या छह से बढ़कर पचास हो गई है.

डच सेना के प्रमुख जनरल पेटर फॉन उम ने कहा है कि उनके सैनिकों ने अफगानिस्तान में ऐसे "स्पष्ट लक्ष्य" हासिल किए हैं जिन पर नीदरलैंड्स गर्व कर सकता है. वहीं तालिबान ने अफगानिस्तान से डच सेना की वापसी का स्वागत किया है और बाकी देशों से भी ऐसा ही करने को कहा है.

कनाडा अपने सभी 2,800 सैनिकों को अफगानिस्तान से अगले साल हटा लेगा, वहीं ब्रिटेन और अमेरिका संकेत दे चुके हैं कि उनके कुछ सैनिक 2011 में अफगानिस्तान छोड़ देंगे.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः ए जमाल

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