भूटान में पहली बार स्थानीय चुनाव
२१ जनवरी २०११पूरे भूटान में स्थानीय चुनाव एक साथ नहीं होंगे. देश का चुनाव आयोग सबसे पहले चार बड़े शहरों में चुनाव कराएगा. इन शहरों को स्थानीय भाषा में थ्रोमडेस कहा जाता है. थिम्पू, फ्युएंत्शोलिंग, सामद्रुप जोंगखार और गीलफू शहरों के वोटर स्थानीय निकाय चुनने के लिए शुक्रवार को वोट डालेंगे.
देर आयद दुरुस्त आयद
ये चुनाव असल में दो साल की देरी से हो रहे हैं. मुख्य चुनाव आयुक्त दाशो कुंजांग वांगड़ी बताते हैं कि देश लोकतांत्रिक प्रक्रिया में नया है और उसके सामने काफी दिक्कतें हैं. वांगड़ी ने डॉयचे वेले को बताया, "लोगों की संस्कृति और मानसिकता को अभी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में ढाला जाना बाकी है. लोगों को अपने मामले अपने हाथ में लेने के लिए काफी कोशिशें करनी होंगी. इसीलिए इस पूरी प्रक्रिया में इतना वक्त लग रहा है. कानून बनाने की प्रक्रिया भी धीमी है क्योंकि ज्यादातर सांसद नए हैं. वे पेशेवर राजनीतिज्ञ नहीं हैं और उन्हें संसदीय कार्रवाई का कोई अनुभव भी नहीं है. इसलिए संविधान को सटीक कानूनों में ढालने में कुछ दिक्कतें आ रही हैं."
कम है उत्साह
स्थानीय निकाय चुनावों में लोग कोई खास दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं. वांगडी़ बताते हैं कि चुनाव प्रचार के दौरान हुई बैठकों में लोग आते ही नहीं थे. वह कहते हैं, "भूटान में 2008 तक चीजें राजा और उनकी सरकार करती थी. वही सोच अब भी बनी हुई है. अब लोग यह लगने लगा है कि संसदीय सरकार बनी है तो उन्हें कुछ करने की जरूरत ही नहीं है. लेकिन यह बहुत जरूरी है कि वे स्थानीय चुनावों में दिलचस्पी लें."
चुनाव आयोग को उम्मीद है कि लोगों तक पहुंचने के लिए उठाए गए उसके कदमों का सकारात्मक नतीजा निकलेगा. चुनाव आयोग ने घर घर जाकर फोटो आई कार्ड बांटे है. अब वह उम्मीद कर रहा है कि लोग बड़ी संख्या में वोट डालने आएंगे.
हालांकि चुनाव प्रक्रिया के दौरान हर लोकतांत्रिक देश में होने वाले विवाद तिब्बत में भी शुरू हो गए हैं. वोटर लिस्ट को लेकर काफी आलोचना हुई है. राजधानी थिम्पू में करीब 86 हजार लोग रहते हैं. लेकिन उनमें से छह हजार ही वोट डाल सकते हैं. जनगणना के दौरान बाकी लोग अन्य जिलों में रजिस्टर हुए. इस बारे में मुख्य चुनाव आयुक्त कहते हैं, "थिम्पू की जनसंख्या उसके असली वोटरों के मुकाबले कई गुना ज्यादा है. यहां रहने वाले लोगों में ज्यादातर कामगार हैं. और जनसेवाओं में लगे लोग भी यहां काफी संख्या में रहते हैं. अगर हम उन सभी को वोट डालने देंगे तो यह तो गलत प्रतिनिधित्व होगा.''
क्या कहते हैं वोटर
इसके साथ यह सवाल भी उठता है कि जब स्थानीय निकाय शहर में रहने वाले हर नागरिक के लिए फैसला करेगा तो हर नागरिक को वोट डालने का अधिकार क्यों नहीं होना चाहिए. इसलिए काफी लोग इस बात से नाखुश हैं कि उन्हें वोट डालने की इजाजत नहीं दी गई है. थिम्पू के एक नागरिक कहते हैं, "भले ही जनगणना के दौरान मेरा नाम समद्रुप में लिखा गया लेकिन मैं यहां पैदा हुआ और यहीं पला बढ़ा. इसलिए अगर मुझे वोट डालने का मौका दिया जाता है तो मैं जरूर वोट डालूंगा."
चार शहरों के स्थानीय निकाय के चुनावों को हर लिहाज से एक परीक्षण की तरह देखा जा रहा है. वैसे चुनाव आयुक्त का मकसद है कि जून महीने तक 20 जिलों और 205 उप जिलों में चुनाव करा लिए जाएं.
रिपोर्टः शेरपेम शेरपा
संपादनः वी कुमार