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मिजोरम में गरमाता ब्रू शरणार्थियों का मुद्दा

प्रभाकर मणि तिवारी
७ नवम्बर २०१८

पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम में ब्रू शरणार्थियों का मुद्दा लगातार गरमा रहा है. 28 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों में मतदान के मुद्दे पर उभरे ताजा विवाद ने राज्य के प्रमुख गृह सचिव लालनुनमाविया चुआनगो की बलि ले ली है.

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Pu Lalthanhawla
तस्वीर: IANS/PIB

अब इससे चुनावों के शांतिपूर्ण आयोजन पर भी खतरा मंडराने लगा है. मुख्य चुनाव अधिकारी एसबी शशांक की शिकायत पर चुनाव आयोग ने बीते सप्ताह उनको हटा दिया. अब मुख्य चुनाव अधिकारी को हटाने की मांग में तमाम संगठनों ने मंगलवार से धरना व प्रदर्शन शुरू किया है. इससे राजधानी आइजल समेत पूरे राज्य में सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. मुख्यमंत्री ललथनहवला ने भी उनको हटाने के लिए मोदी को पत्र भेजा है. मिजोरम में वर्ष 1997 की जातीय हिंसा के बाद पलायन करने वाले हजारों शरणार्थी पड़ोसी त्रिपुरा स्थित शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं. इन लोगों की मांग है कि पहले की तरह इन शिविरों में ही पोस्टल बैलट के जरिए उनके मतदान का इंतजाम किया जाए. लेकिन राज्य के तमाम नागरिक और गैर-सरकारी संगठन इसका विरोध कर रहे हैं.

मामला

राज्य में 1997 में हुई हिंसक झड़पों के बाद ब्रू जनजाति के हजारों लोग भाग कर पड़ोसी त्रिपुरा में चले गए थे. वह वहां शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं. अब तक वह लोग पोस्टल बैलट के जरिए वोट डालते थे. इन शरणार्थियों के संगठन मिजोरम ब्रू डिसप्लेस्ड पीपुल्स फोरम (एमबीडीपीएफ) ने जहां मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत और राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी एसबी शशांक को पत्र लिख कर शरणार्थी शिविरों में मतदान केंद्र स्थापित करने की अपील की है वहीं यंग मिजो एसोसिएशन (वाईएमए) ने इसका विरोध करते हुए कहा है कि इन शरणार्थियों को मिजोरम में आ कर ही वोट देना होगा. कई अन्य गैर-सरकारी संगठनों ने आयोग से अपील की है कि पुनर्वास पैकेज के तहत मिजोरम नहीं लौटने वाले ब्रू शरणार्थियों को मतदान का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए.

मुख्य चुनाव अधिकारी एसबी शशांक बताते हैं, "चुनाव आयोग ने विस्थापित ब्रू परिवारों के लिए मतदान की व्यवस्था करने का निर्देश दिया है. हालांकि अब तक विस्तृत दिशानिर्देश नहीं मिला है.” वह बताते हैं कि त्रिपुरा में रहने वाले इन ब्रू वोटरों ने 2013 के विधानसभा चुनावों में अपने राहत शिविरों में ही मतदान किया था. उसके बाद अगले साल हुए लोकसभा चुनावों में भी इन विस्थापित वोटरों ने मतदान किया था. केंद्र सरकार त्रिपुरा व मिजोरम सरकारों की सहायता से इन विस्थापित लोगों को वापस मिजोरम लौटाने का प्रयास कर रही है. लेकिन ब्रू जनजाति के ज्यादातर लोगों ने पुनर्वास पैकेज को असंतोषजनक बताते हुए मिजोरम लौटने से इंकार कर दिया है.

दूसरी ओर, ब्रू जनजाति के विस्थापित लोगों के संगठन मिजोरम ब्रू डिसप्लेस्ड पीपुल्स फोरम (एमबीडीपीएफ) के  महासचिव ब्रूनो शा ने कहा है कि वह लोग पहले की तरह राहत शिविरों में पोस्टल बैलट से मतदान कराने के पक्ष में हैं. उन्होंने चुनाव आयोग से सवाल किया है कि आखिर पोस्टल बैलट प्रणाली को खत्म क्यों कर दिया गया है? आयोग ने अबकी कहा है कि त्रिपुरा में रहने वाले इन लोगों को अबकी मिजोरम सीमा में बने मतदान केंद्रों तक जाकर वोट डालना होगा. लेकिन ब्रूनो कहते हैं, "त्रिपुरा-मिजोरम सीमा पर बने मतदान केंद्रों से राहत शिविरों की दूरी 20 से 70 किमी तक है. ऐसे में खासकर महिलाओं व बुजुर्गों के लिए इतनी लंबी दूरी तय करना मुश्किल है.”

ब्रू संगठन के अध्यक्ष ए सावीबुंगा और महासचिव ब्रूनो शा ने चुनाव आयोग को भेजे अपने पत्र में कहा है कि त्रिपुरा के शिविरों में रहने वाले 6,777 ब्रू शरणार्थियों के नाम मिजोरम जिले के मामित जिले की मतदाता सूची में दर्ज हैं. इन शिविरों में रहने वाले वोटरों में से ज्यादातर महिलाएं और बुजुर्ग हैं. उनके लिए मिजोरम पहुंच कर मतदान करना असंभव है. संगठन ने कहा है कि मिजोरम में इन शरणार्थियों को खतरा भी हो सकता है. दूसरी ओर, राज्य के ताकतवर संगठन यंग मिजो एसोसिएशन ने कहा है कि मिजोरम लौटने से इंकार करने वाले ब्रू शरणार्थियों को राज्य से बाहर मतदान की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. संगठन के अध्यक्ष वान लालरूता का कहते हैं, "चुनाव आयोग कई बार कह चुका है कि ब्रू शरणार्थी मिजोरम में ही अपना वोट दे सकते हैं. इस बार भी ऐसा ही होना चाहिए.”

आंदोलन

मिजोरम के नागरिक संगठनों और गैर-सरकारी संगठनों के साझा मंच कोआर्डिनेशन कमिटी के सदस्यों ने राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी एसबी शशांक को उनके पद से हटाने की मांग में मंगलवार को राजधानी आइजल समेत तमाम जिला मुख्यालयों में धरना दिया. कमिटी ने अपनी मांगों के समर्थन में मिजोरम बचाओ आंदोलन शुरू कर दिया है. उसका कहना है कि मुख्य चुनाव अधिकारी को नहीं हटाने तक यह आंदोलन जारी रहेगा. राज्य के प्रमुख गृह सचिव एल चुआनगो के तबादले से नाराज लोगों ने शशांक के इस्तीफे की मांग उठाई है. इस बीच, चुनाव आयोग ने इस मुद्दे पर राज्य में उभरे गतिरोध पर मुख्य सचिव अरविंद रे, कोआर्डिनेशन कमिटी के नेताओं और दूसरे संबंधित पक्षों से बातचीत कर समस्या के समाधान का जिम्मा एक तीन-सदस्यीय टीम को सौंपा है. इस टीम में झारखंड के मुख्य चुनाव अधिकारी एल खैंग्टे, चुनाव आयोग के निदेशक निखिल कुमार और सचिव एसबी जोशी शामिल हैं.

प्रमुख गृह सचिव चुआनगो ने मिजोरम के ब्रू शरणार्थियों के लिए त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों में मतदान की व्यवस्था करने की पहल का विरोध किया था. लेकिन मुख्य चुनाव अधिकारी ने चुनाव आयोग को पत्र भेज कर शिकायत की कि चुआनगो चुनावी प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर रहे हैं. इसके बाद आयोग ने गुजरात काडर के इस आईएएस अधिकारी को तमाम जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया था. यहां इस बात का जिक्र जरूरी है कि चुआनगो मूल रूप से मिजोरम के ही रहने वाले हैं.

मुख्यमंत्री ने भी लिखा पत्र

मिजोरम के मुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ललथनहवला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भेज कर राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी एसबी शशांक को उनके पद से हटाने की मांग उठाई है. उन्होंने कहा है कि शशांक राज्य के लोगों का भरोसा खो चुके हैं. ललथनहवला ने अपने पत्र में लिखा है, "राज्य में विधानसभा चुनावों के सुचारू रूप से संचालन के लिए शशांक को फौरन उनके पद से हटाया जाना जरूरी है. अगर तत्काल नए मुख्य चुनाव अधिकारी की नियुक्ति में दिक्कतें हो तो अतिरिक्त मुख्य चुनाव अधिकारी को उनका कार्यभार सौंपा जा सकता है.”

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि मिजोरम के ब्रू शरणार्थियों का मुद्दा राज्य के स्थानीय लोगों व संगठनों के लिए पहले से ही काफी संवेदनशील रहा है. हर चुनाव में इस मुद्दे पर गतिरोध उभरता है. लेकिन अबकी ब्रू शरणार्थियों के मतदान के सवाल पर उभरे गतिरोध के बाद स्थानीय आईएएस अधिकारी को हटाए जाने के बाद इस विवाद ने जोर पकड़ लिया है.

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