इस बीमारी में नहीं रह जाता मोटापे पर काबू | विज्ञान | DW | 29.03.2019
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विज्ञान

इस बीमारी में नहीं रह जाता मोटापे पर काबू

कैसा हो अगर आपको गर्मी सर्दी, हर मौसम में तंग स्टॉकिंग्स पहनने पड़ जाएं? कुछ लोगों को ऐसा करना पड़ता है, वह भी इसलिए क्योंकि उनके शरीर में वसा की मात्रा इतनी ज्यादा हो जाती है कि बिना स्टॉकिंग्स के शरीर संभलता ही नहीं है.

नीना उलेनब्रॉक साल में दो बार कंप्रेशन स्टॉकिंग्स के लिए अपना नाप देने आती हैं. इन स्टॉकिंग्स को उन्हें बांहों और टांगों पर पहनना होता है क्योंकि उन्हें लिपीडीमिया है. नीना को देख कर लोगों को अकसर लगता है कि उनकी दिक्कत मोटापा है, लेकिन लिपीडीमिया सिर्फ मोटापा नहीं है. दरअसल यह एक मेटाबॉलिक बीमारी है, जिसमें वसा त्वचा के नीचे जमा होने लगता है.

नीना बताती हैं, "लिपीडीमिया का फैट बीमारी वाला फैट है, यह आम फैट से अलग है. आम फैट के मुकाबले यह कड़ा या थुलथुला होता है. इसी वजह से दर्द भी होता है. जब कोई आपको छूता है या आपका पैर कहीं टकराता है तो इतना दर्द होता है कि आप सोच नहीं सकते." कंप्रेशन स्टॉकिंग्स के जरिए उन्हें इस दर्द से राहत मिलती है. नीना कहती हैं, "स्टॉकिंग्स पैरों को बहुत भारी महसूस नहीं होने देती हैं. इनके बिना ऐसा लगता है जैसे मेरे शरीर का पूरा भार नीचे लटक रहा है."

आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में 11 प्रतिशत महिलाएं लिपिडीमिया का शिकार होती हैं. शुरुआत जांघों और कूल्हों पर वसा के जमने से होती है. धीरे धीरे वसा वाला हिस्सा इतना नाजुक हो जाता है कि वहां दर्द होने लगता है. ऐसे में कहीं ठोकर लगने से नील भी बहुत जल्दी पड़ जाते हैं. वक्त के साथ वसा की मात्रा इतनी ज्यादा हो जाती है कि यह लिम्फैटिक सिस्टम के काम पर असर डालने लगती है.

ये सिस्टम शरीर में अलग अलग तरह के फ्लुइड की मात्रा को संतुलन में रखने का काम करता है और इस तरह से शरीर को संक्रमण से बचाता है. लेकिन सिस्टम के सही तरीके से काम ना करने के कारण लिम्फैटिक फ्लुइड ठीक तरह से बह नहीं पाता और नतीजतन बांहों और पैरों में सूजन आने लगती है.

नीना इस बीमारी के पीड़ितों का एक नेटवर्क तैयार कर रही हैं. उन्होंने एक सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाया है जिससे अब तक 20 महिलाएं जुड़ चुकी हैं. इस ग्रुप की वेबसाइट भी है और एक फेसबुक पेज भी. नीना बताती हैं, "हमने ग्रुप बनाया क्योंकि हम चाहते हैं कि इन महिलाओं में फिर से आत्मविश्वास जगे, वो खुद को कमतर ना समझें. स्टॉकिंग्स के बावजूद और दर्द के बावजूद वे बाहर निकलें और जीवन का आनंद ले सकें." 

नीना बताती हैं कि इस बीमारी से जूझ रहे लोगों को समाज में बॉडी शेमिंग का भी सामना करना पड़ता है. लोग उनके मोटापे का मजाक उड़ाते हैं और यही वजह है कि वे लोगों को इस बारे में जागरूक करना चाहती हैं कि लिपीडीमिया वजन कम करने के बावजूद भी खत्म नहीं होता है. स्टॉकिंग पहनने के अलावा नीना को हफ्ते में दो बार लिम्फैटिक ड्रेनेज नाम की मालिश भी करानी होती है.

इस मालिश का मकसद लिम्फैटिक फ्लुइड के ब्लॉकेज को खत्म करना होता है. नीना बीते पांच साल से लिपीडीमिया से लड़ रही हैं. वह नहीं चाहतीं कि यह बीमारी किसी भी तरह उनकी जिंदगी पर भारी पड़े.

आंद्रेया वॉल्टर/ईशा भाटिया

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